Saturday 8 November 2014

"मोह"

अति  बहुमूलय  सूत्र 



जब तक  हमारे  "भीतर" से  कुछ उत्त्पन नहीं होता ,  "आत्मा"
  उदास व "मन" अस्थिर रहता है I 

उदहारण  
यदि हमारे  पास  अपनी मेहनत से  अर्जित की हुई नौकरी नही या अपने से बनाया हुआ घर नहीं , या आपने से उत्त्पन हुई संतान नहीं'
तब तक हमारी आत्मा अप्रसन्न और मन अस्थिर रहता है I 
         क्यों ?

क्योंकि 
हर व्यक्ति की "आत्मा " स्वयं से कुछ "उत्पन्न" कर , पूर्णता अनुभव करती  है।

स्मरण योग्य
"पूर्णता "आनंद" का अनुभव देती है"


समझने योग्य:
यदि अपने से कुछ उतपन्न ""नहीं"" होता, तो आत्मा "अतृप्त" रहतीं है।
यदि अपने से कुछ भी उतपन्न "हो" जाता है, तो मन उसके  "मोह" से बंध कर "व्याकुल" होता रहता है।
अपने से  उत्पन्न की हुई वस्तु या व्यक्ति से मनुष्य का मोह ,उसी के लिए बाधा भी बन जाता है।


संकट:
पैदा "न" हो तो "उदासी " 


और
पैदा "हो" जाए तो मोह के बंधन का "आजीवन"  का कारागृह!



"इधर खाई उधर गढा"




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